ऑटोग्राफ बूक के बारे में तो हम सभी ही जानते है। स्कूल के या कॉलेज के दिनों में कई युवाओं के लिए इस की अलग अहमियत होती है। इसी ऑटोग्राफ बूक को लेकर तमिल में ’ऑटोग्राफ’ नाम की फ़िल्म बनी गयी। यह फ़िल्म सन २००४ में रीलीज़ हुई थी।
यह फ़िल्म सबकुछ चरण है। यानी इस फ़िल्म के निर्देशक, निर्माता, लेखक तथा मुख्य कलाकार चरण है। शायद इसी लिए जो प्रभाव दर्शकों पर पडने की उम्मीद इस फ़िल्म से की जा सकती है वह प्रभाव दिखाई देता है। इस हफ़्ते कई दिनो बाद नई तमिल फ़िल्म देखी। इस से पहले ’शिवाजी द बॉस’ देखी थी। ’ऑटोग्राफ’ की कहानी एक कॉलेज युवा जिस का नाम सेंथिल है, उस के ऑटोग्राफ बूक पर आधारित है। गांव में शिक्षा होने के पश्चात जब वह शादी का कार्ड बाटने अपने गांव आपस आता है, तब ऑटोग्राफ बूक की उस की वह यादें फिर से नयी हो जाती है। अपने किशोर तथा युवक अवस्था में किए प्यार की यादें उसे ताज़ा करती है। ज़िंदगी का पहला प्यार उसने अपने स्कूल की एक लड़की से किया था। उस के बालों की यादें अभी तक उस के साथ थी। लेकिन आज उस की शादी हो गयी थी और वह तीन बच्चों की मां भी है। उसे मिलने के बाद वह खुश होता है।
गांव छोडने के बाद युवावस्था का प्यार जिस का नाम लतिका है उस से हुआ था। वह एक मल्याली लडकी थी। दोनों को एक दूसरे की ज़बान नहीं समजती थी मगर भावनाओं की भाषा उन्होने अच्छी तरह से समझ ली थी। लतिका से मिलने वह केरल चला जाता है। शायद उसे लगा होगा की अब लतिका अपने जीवन से खुश है। मगर असल में वह आज एक विधवा का जीवन बिता रही है। लतिका से उस का मिलना और अंत में बिछडना एक फिल्मी कहानी की याद दिलाता है।
आखिर में उस के जीवन में तिसरी लडकी का प्रवेश होता है। वह उस की प्रेमिका नहीं मगर एक मार्गदर्शक है। लतिका से बिछडने के बाद स्नेहा ही उसे जीवन का सही रास्ता दिखाती है। और संथिल की शादी अंत में कनिका से तय होती है। उन की शादी में उस की तीनों सहेलियां शामिल होती है।
क्या सोचा था और कहां आ गये? इस प्रकार की कहानी ’ऑटोग्राफ’ में नज़र आती है। शायद यही फ़िल्म की कहानी का आत्मा है। चरण की कहानी आज के कई युवाओं से मिलतीजुलती लगती है।
इस फ़िल्म को सन २००५ के राष्ट्रीय पुरस्कारों में चार पुरस्कार मिले थे, जिस में ’परिपूर्ण मनोरंजन फ़िल्म’ का एवार्ड भी शामिल था। २००४ साल की यह तीसरी सबसे बडी हिट फ़िल्म थी।
यह फ़िल्म सबकुछ चरण है। यानी इस फ़िल्म के निर्देशक, निर्माता, लेखक तथा मुख्य कलाकार चरण है। शायद इसी लिए जो प्रभाव दर्शकों पर पडने की उम्मीद इस फ़िल्म से की जा सकती है वह प्रभाव दिखाई देता है। इस हफ़्ते कई दिनो बाद नई तमिल फ़िल्म देखी। इस से पहले ’शिवाजी द बॉस’ देखी थी। ’ऑटोग्राफ’ की कहानी एक कॉलेज युवा जिस का नाम सेंथिल है, उस के ऑटोग्राफ बूक पर आधारित है। गांव में शिक्षा होने के पश्चात जब वह शादी का कार्ड बाटने अपने गांव आपस आता है, तब ऑटोग्राफ बूक की उस की वह यादें फिर से नयी हो जाती है। अपने किशोर तथा युवक अवस्था में किए प्यार की यादें उसे ताज़ा करती है। ज़िंदगी का पहला प्यार उसने अपने स्कूल की एक लड़की से किया था। उस के बालों की यादें अभी तक उस के साथ थी। लेकिन आज उस की शादी हो गयी थी और वह तीन बच्चों की मां भी है। उसे मिलने के बाद वह खुश होता है।
गांव छोडने के बाद युवावस्था का प्यार जिस का नाम लतिका है उस से हुआ था। वह एक मल्याली लडकी थी। दोनों को एक दूसरे की ज़बान नहीं समजती थी मगर भावनाओं की भाषा उन्होने अच्छी तरह से समझ ली थी। लतिका से मिलने वह केरल चला जाता है। शायद उसे लगा होगा की अब लतिका अपने जीवन से खुश है। मगर असल में वह आज एक विधवा का जीवन बिता रही है। लतिका से उस का मिलना और अंत में बिछडना एक फिल्मी कहानी की याद दिलाता है।
आखिर में उस के जीवन में तिसरी लडकी का प्रवेश होता है। वह उस की प्रेमिका नहीं मगर एक मार्गदर्शक है। लतिका से बिछडने के बाद स्नेहा ही उसे जीवन का सही रास्ता दिखाती है। और संथिल की शादी अंत में कनिका से तय होती है। उन की शादी में उस की तीनों सहेलियां शामिल होती है।
क्या सोचा था और कहां आ गये? इस प्रकार की कहानी ’ऑटोग्राफ’ में नज़र आती है। शायद यही फ़िल्म की कहानी का आत्मा है। चरण की कहानी आज के कई युवाओं से मिलतीजुलती लगती है।
इस फ़िल्म को सन २००५ के राष्ट्रीय पुरस्कारों में चार पुरस्कार मिले थे, जिस में ’परिपूर्ण मनोरंजन फ़िल्म’ का एवार्ड भी शामिल था। २००४ साल की यह तीसरी सबसे बडी हिट फ़िल्म थी।
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